Sunday, April 26, 2015

#NETNEUTRALITY: जरा समझें आखिर क्‍यों मचा है बवाल

मोबाइल स्पेसिफिकेशंस से पनीर कोरमा तक और हिटलर से मुसोलिनी इंटरनेट ने हमें अकूत जानकारियों का भंडार दिया है. किताबों के दूर होने से पैदा हुए स्‍पेस को इंटरनेट ने काफी हद तक भरने की कोशि‍श की है. लेकिन अब यह इंटरनेट बदलने जा रहा है. जी हां, भारत में इंटरनेट पूरी तरह से बदलने जा रहा है. अब इंटरनेट फ्री में मिलने जा रहा है. टेलिकॉम सर्विस प्रोवाइडिंग कंपनियां आपको ऐसे ऑफर देने जा रही हैं जिनमें आपको आजादी होगी कि आप कौन सी एप यूज करें और कौन सी एप यूज ना करें…जैसे कि अगर आप सिर्फ वॉट्सएप यूज करते हैं तो आप दस-बीस रुपये का प्लान खरीद कर पूरे महीने मजे से वॉट्सएप यूज करें. आपको क्या जरूरत है कि 3 सौ रुपये का 3जी डाटा पैक यूज करें. मैं यह मानकर चल रहा हुं कि ऊपर लिखे ऑफर आपको बहुत पसंद आ रहे होंगे. रीजनेवल भी लग रहे होंगे. लेकिन भारत में नेट न्यूट्रेलिटी का अंत मुगल साम्राज्य के अंत और ब्रिटिश राज के आरंभ की तरह ही साबित होने वाला है. नेट न्युट्रेलिटी समर्थकों और टेलिकॉम सर्विस ऑपरेटर्स की यह लड़ाई समझने के लिए सबसे जरूरी है कि आप इंटरनेट न्यूट्रेलिटी की एबीसीडी को समझ लें. वरना आप भी उन करोड़ों लोगों में शामिल हो जाएंगे जो प्लासी युद्ध के दौरान मैदान के बाहर खड़े होकर युद्ध परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे थे जब उनकी जिंदगी की सबसे जरूरी लड़ाई लड़ी जा रही थी. इससे पहले कि समय निकले, आपको यह जानना चाहिए कि आख‍िर यह लड़ाई क्यों लड़ी जा रही है और आप इस लड़ाई में कहां खड़े हैं.

क्या है नेट न्यूट्रेलिटी

हिंदी में नेट न्यूट्रेलि‍टी का शाब्दि‍क अर्थ है: इंटरनेट पर मौजूद सामग्री की रूप मुक्त, उद्देश्य मुक्त, स्त्रोत मुक्त उपलब्धता. फिलहाल इंटनेट पर आप जो कुछ भी कर रहे हैं वह बाइट्स में मापा जाता है:
मतलब –
विकीपीडिया के 20 किलोबाइट के पेज का मूल्य = x रुपये
और फेसबुक के x किलोबाइट के पेज का मूल्य भी = x रुपये
यानी कंटेंट कुछ भी हो आपको पैसे बाइट्स के हिसाब से ही देने होंगे. अब जैसे-जैसे आपका यूसेज बढ़ता जाएगा वैसे-वैसे आपका इंटरनेट खर्चा बढ़ता जाएगा. चाहें अपना 2 गीगा बाइट के डाटा पैक से पोर्न वीडियो देख लें या हिस्ट्री चैनल की डॉक्यूमेंट्री, आपको पैसे 2 गीगा बाइट के हिसाब से ही देने होंगे. यह कुछ-कुछ पंसारी की दुकान से आटा खरीदने जैसा है. जब आप आटा खरीदने जाते हैं तो क्या आपका पंसारी आपसे यह पूछता है कि आपको आटे से रोटी बनानी है या परांठे, रोटी बनानी हो तो ये वाला आटा ले जाओ और परांठे बनाने हों तो ये वाला आटा. नहीं ना! आप तो बस पंसारी को आटे के पैसे किलो के हिसाब से देते हैं ना कि उससे बनने वाले भोजन के हिसाब से.

क्या हैं वर्तमान व्यवस्था के फायदे
अगर आप इस व्यवस्था के फायदे जानना चाहते हैं तो आपको इंटरनेट की लाइफ साइकिल को समझना होगा. इंटरनेट दो लोगों को टेलिफोन के तारों से जोड़ने की व्यवस्था से जोड़ने का नाम है. इस प्रोसेस के तहत दो लोग अपने कंटेंट को आसानी से इंटरनेट के माध्यम से एक दूसरे के साथ शेयर कर सकते हैं. आप अपनी बात को, बिजनेस आइडिया को और व्यापार को दुनियाभर में मुक्त रूप से इंटरनेट यूज कर रहे लोगों तक पहुंचा सकते हैं. वर्तमान व्यवस्था आपको चुनाव का अधि‍कार देती है कि आप इंटरनेट को कैसे, कितना एवं कब यूज करें. इंटरनेट एक ताकत है जिसके माध्यम से आप अपने जीवन को बदल सकते हैं. अपने सपने पूरे कर सकते हैं. यह पूरी दुनिया में समानता का आाखि‍री मोहल्ला है जहां सब तकनीकी आधार पर सामान्य हैं. यहां सिर्फ कंटेंट बिकता है स्त्रोत या ब्रांड नहीं.net-neutrality-what-you-need-know-now-infographicरेगुलेटेड इंटरनेट – एक नई असमान वर्चुअल दुनिया की रचना
इंटरनेट को रेगुलेट करके दरअसल एक नई असमान वर्चुअल दुनिया की रचना करने की साजिश की जा रही है जिसमें महंगा पैक खरीदने वाले काफी तेज इंटरनेट यूज कर पाएंगे और कम पैसे खर्च करने वालों को स्लो इंटरनेट यूज करना होगा. देखें इमेजnet-neutrality-1-620x400लेकिन कंपनियों को हो रहा है नुकसान अब आपने एक पक्ष सुन लिया है तो इस महामुकाबले का दूसरा पक्ष भी सुन लें. दरअसल इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स का तर्क है कि जैसे जैसे भारत में स्मार्टफोन यूजर्स बढ़ रहे हैं, इंटरनेट के भार को संभालना मुश्कि‍ल हो रहा है. ऐसे में उनके लिए इंटरनेट इंफ्रास्ट्रक्चर मैंटेन करना संभव नही है. इसलिए वह इंटरनेट को सेक्शन में बांटना चाहते हैं जिससे डाटा को सही तरीके से डिस्ट्रीब्यूट किया जा सके. लेकिन असल बात यह है कि ओवर द टॉप प्लेयर्स यानी वॉट्सएप, इंस्टाग्राम, वाइबर, स्काइप आदि‍ आदि की इन्नोवेटिव सेवाओं के चलते लोगों ने टेलिकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स की कॉल एवं एसएमएस सुविधाओं को यूज करना बंद कर दिया है.
नोकिया फोन पर चुटीली-मजेदार बातों का दौरअगर किसी को याद हो तो जरा उस दौर में जाएं जब एयरटेल, हच और अन्य जीएसएम कंपनियों ने सिम सर्विसेज के नाम पर ज्योतिष, ट्रेवल और चुटीली बातों की सर्विसेज शुरु की थीं. इन सर्विसेज के दौर में लोगों के पास फ्लोरोसेंट लाइट वाले नोकिया 3315 और 1100 फोन आते थे. ऐसी किसी सर्विस को यूज करते ही लोगों के मेन बैलेंस से 100 से 150 रुपये कट जाया करते थे. शुरुआती फोन यूजर्स के बीच पांच अंकों के एसएमएस नंबर आतंक के रूप में व्याप्त हो गए थे. गलत प्रस्तुतिकरण और ग्राहकों की दोहन मानसिकता से इन सर्विसेज का अंत हो गया. लेकिन इसके बाद स्मार्टफोन एप्स का दौर आया. इन एप्स ने बिना पैसे लिए आपको बेहतर तरीके से जानकारी उपलब्ध कराई. हालांकि एप्स ने अपने भर का खर्चा निकालने के लिए एड्स का सहारा लिया. बेहतर जानकारी उपलब्ध कराकर इन एप्स ने एड के सहारे वह पैसा कमाना शुरु कर दिया जिसे इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडिंग कंपनियां अपना मान रही थीं. यह प्राकृतिक रूप से उपलब्ध नमक पर कर लगाने जैसा है. कि ब्रिटि‍श राज के समुद्री क्षेत्र रूपी टेलिफोन लाइनों से जो भी रेत रूपी डाटा उपलब्ध हो रहा है उस पर प्रथम अधि‍कार राज का है.
इसके विपरीत अगर आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो प्रति तीन महीनों में इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडिंग कंपनियों के डाटा शुल्क और खपत में बेतरतीब बढ़त देखी गई है. ऐसे में कंपनियों को जो नुकसान एसएमएस और कॉलिंग सर्विसेज के खत्म होने के नुकसान से उठाना पड़ रहा है उससे कहीं ज्यादा वे इंटरनेट प्रोवाइडिंग सर्विस से कमा रही हैं. देखें इमेज.airtel-data-table-q3-fy13-495x284फर्ज किजिए कि ट्राई ने भारतीय टेलिकॉम ऑपरेटर्स की शर्ते मानकर इंटरनेट को इन कंपनियों के अधीन कर दिया तो इस कंडीशन में आपको हर सर्विस यूज करने के लिए एक नया पैक खरीदना पड़ेगा. इसके अलावा नई एप कंपनियों के लिए आप तक पहुंचना लगभग असंभव हो जाएगा. नई जानकारियों का आप तक पहुंचना नामुमकिन होगा क्योंकि आप तक वही जानकारी पहुंच पाएगी जो आप तक पहुंचने के लिए आपके टेलिकॉम ऑपरेटर को शुल्क अदा कर पाएंगे और आप वही जानकारी प्राप्त कर पाएंगे जिसके लिए आप पैसे दे पाएंगे. इसलिए आज ही अगर मुक्त इंटरनेट चाहिए हो तो Change.org पर अपनी पेटिशन दाखि‍ल करें और ट्राई को मेल करें कि आप इंटरनेट न्यूट्रेलिटी के पक्ष में हैं क्योंकि अब नहीं चेते तो अगला मौका बहुत देर में आएगा…
इस विषय पर ज्यादा पढ़ने के लिए कृप्या इस लिंक को खोलें:
http://www.medianama.com
https://docs.google.com/document/d/1DNXgJRKUMk4Tqefzybab7HzsV6EeYmnciPqMQG91EN0/edit
मीडियानामा और अन्य सभी साथि‍यों को इस बारे में जानकारी उपलब्ध कराने के लिए सधन्यवाद. पिक्चर्स गूगल से ली गई हैं एवं बिना किसी छेड़़छाड़ के पब्लिश की गई हैं. किसी को क्रेडिट दिया जाना जरूरी हो तो कृप्या बताएं

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